घीसूलाल बदामिया एक सफल उद्योगपति और समृद्ध समाजसेवी। बेबाक तो इतने कि सुननेवाले दांतों तले उंगली दबाकर सुनते हैं। पूरा समाज उनमें अपना मजबूत नेतृत्व देखता है, और इरादे उनके इतने अटल हैं कि कोई उन्हें उनके निर्णय से डिगा नहीं सकता। पूरे गोड़वाड़ में उन्हें बुलंद इरादों वाले किसी अटल योद्धा के रुप में जाना जाता है। या यूं भी कहा जा सकता है कि घीसूलाल बदामिया मजबूत इरादों की बुलंदियों के बादशाह है, जिनको देखकर ही दूसरों में ही हिम्मत अपने आप आ जाती है। जितनी क्षमता के साथ वे हर काम करते हैं, उतनी हिम्मत और मजबूती किसी भी अन्य में आसानी से नहीं दिखती। दरअसल, घीसूलाल बदामिया समाज के उन लोगों में सबसे ऊंचे शिखर पर बिराजमान हैं, जिन्हें समाज बहुत सम्मान से देखता है।
सफलता का संसार अकसर बहुत मेहनत मांगता है। और उस संसार को बहुत व्यापक बनाने के लिए तो पूरा जीवन लग जाता है। लेकिन घीसूलाल बदामिया की सफलता का संसार देखना हो, तो सबसे पहले उनके व्यवसाय को कुछ इस तरह से देखिए। पूरे भारत में सभ्य समाज का कोई भी घर ऐसा नहीं होगा, जिसके बाथ रूम में बाल्टी, मग, टूथ ब्रश नहीं होंगे। किचन में सामान रखने के डिब्बों से लेकर रोटी रखने के केसरोल और लंच बॉक्स के साथ बाकी भी बहुत सारा किचनवेयर का सामान भी दिखेगा। घर के दालान में डाइनिंग टेबल व डिनर सेट लेकर कुर्सियां होंगी और गार्डन सहित सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बैठने के लिए कुर्सियां तो होती हैं। सफर में जाने के समय हम लोग या स्कूल जाते वक्त बच्चे पर घर से पानी की बोतल लेकर निकलते है। हर घर में पेन तो मिल ही जाएंगी। डस्ट बिन भी मिलेगा और ऑफिस में इस्तेमाल करने की बहुत सारी चीजें भी मिलेंगी। आपसे अनुरोध है कि इन सारी चीजों को चेक कीजिए, इस सब पर एक नाम समान रूप से आपको मिलेगा, वह है – सेलो। जी हां, सेलो। उसी सेलो की दुनिया यानी सेलो वर्ल्ड के जन्मदाता हैं घीसूलाल बदामिया – एक सफलतम उद्योगपति।

सेलो -आज भारत का एक ऐसा ब्रांड बन चुका है, जिसकी हर घर और हर जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने इस ब्रांड को बनाने, प्रतिष्ठा दिलाने और फिर घर तक पहुंचाने में सेलो ने जो सफलता पाई है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। लेकिन चमत्कार यूं ही नहीं होते। छोटे से कारोबारी से बहुत बड़ा उद्योगपति बनने के रास्ते में घीसूलाल बदामिया को पता था कि चमत्कारों के लिए गहन तपस्या, सर्वस्व समर्पण और एक खास किस्म की लगन की जरूरत होती है। इस सबके साथ बदामिया को यह भी जानकारी थी कि किसी ब्रांड की नई पहचान को खड़ा करने के लिए अपने अस्तित्व का दमन करने और खुद की पहचान को मिटा देने का माद्दा भी होना चाहिए। तब जाकर एक ब्रांड खड़ा होता है। और ब्रांड बन गया, तो हम उससे भी बड़े अपने आप हो जाते हैं। घीसूलाल बदामिया का सेलो ब्रांड आज घर घर में व्याप्त है। इसके पीछे उनकी लगन, मेहनत, हिम्मत और लगातार आगे बढ़ते रहने का सामथ्र्य ही है, जिसने उन्हें आज तक पीछे देखने ही नहीं दिया।
राजस्थान के पाली जिले के सादड़ी कस्बे के मूल निवासी घीसूलाल बदामिया को देश भर में व्यक्तिगत रूप से जितने लोग जानते हैं, उसके मुकाबले लाखों गुना ज्यादा लोग उनके ब्रांड – सेलो को जानते हैं। लेकिन सेलो को यह पहचान उनकी दूरदृष्टि की वजह से उन्हें मिली है। बदामिया गजब के दूरदृष्टा है। बदामिया की सबसे बड़ी व्यावसायिक पहचान उनका ब्रांड – सेलो है, तो सामाजिक पहचान उनकी क्षमता, सामथ्र्य एवं दृढ़ता है। जो चाहा वह किया, जो कहा वही करके दिखाया और हमेशा सबसे अलग काम किया – यही बदामिया की सबसे बड़ी पहचान है। सच हमेशा कड़वा होता है, इसलिए लोगों को चुभता भी है, यह वे अच्छी तरह जानते भी हैं, फिर भी सच का दामन छोड़ते नहीं है। साफगोई उनकी जुबान पर है और हर बात को पूरी ताकत के साथ कहना उनकी आदत। वे जो कहते हैं, करके दिखाते हैं, सो, समाज उनकी किसी भी बात को कभी टालता नहीं है। बदामिया ने जो कह दिया, वह पत्थर की लकीर मानकर लोग उनकी पालना करते हैं। अनेक सम्मान, कई पद और प्रतिष्ठाजनक अभिनंदनों से विभूषित होनेवाले घीसूलाल बदामिया को उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटिल ने मुंबई के राजभवन में एक विशेष समारोह में उनका अभिनंदन किया।

सच बात यह है कि जीवन में समय के मूल्य को किसी भी अन्य व्यक्ति के मुकाबले बदामिया बहुत गहराई से समझते हैं। वे मानते हैं कि हमारे हाथ में जो समय है, वही हमारा है। यदि हम उसे जी लेंगे, तभी वह हमारा होगा। वरना तो वह निकल जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएंगे। जीवन में मिले समय का सबसे बेहतरीन उपयोग करके ही घीसूलाल बदामिया अपने उद्योग एवं सामाजिक जीवन में सबसे सम्मानित स्थान पर पहुंचे हैं। यह वह शिखर है, जहां जगह पाने के लिए लोग पूरा जीवन खपा देते हैं। बदामिया उस व्यक्तित्व के धनी हैं, जो अपने सपने पूरे करने में जितना विश्वास करते हैं, उतना ही दूसरों के सपने पूरे करने में भी जी भर कर सहयोग करते हैं। उन्होंने किस किस के सपने पूरे किए, यह वे कभी नहीं गिनाते। लेकिन मुंबई, मारवाड़, और देश भर में अलग अलग शहरों – गांवों में रहनेवाले हजारों लोग मानते हैं कि सेलो के जरिए उनके जीवन को सफल बनाने में बदामिया के औद्योगिक साम्राज्य का बहुत बड़ा योगदान है। किसी को व्यापार में सहायता करके उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद की, तो किसी बीमार के इलाज में सहायता करके उन्होंने उसका जीवन बचाया। किसी को पढ़ाने में सहायता की, तो किसी को रोजगार देकर परिवार का भरण पोषण करने योग्य बनाया। बहुत सारे अलग अलग लोगों के किस्से अनेक हैं, कईयों की जिंदगी बदल गई, लेकिन बदामिया नहीं बदले। बातचीत में वहीं अक्खड़ किस्म की साफगोई वाला अंदाज और व्यवहार में वही दबंग तेवर। ये तेवर ही अनकी असली पहचान भी है।
बहुत कम लोग होते हैं, जो बड़े से बड़ा फैसला भी चुटकी में ले लेते हैं। घीसूलाल बदामिया उन्हीं में से हैं, जो हर मुश्किल काम को भी चुटकी में कर लेते हैं। उनकी इच्छा शक्ति और साहस उनकी सबसे बड़ी ताकत है। और समय के तो वे इतने पाबंद हैं कि घड़ी मिला लो। अपनी तरफ से किसी अन्य का समय बरबाद न हो इसका वे पूरा खयाल रखते हैं और दूसरों के कारण अपने समय को बरबाद करना उनकी आदत में बिल्कुल नहीं है। वे जुझारू हैं इतने हैं कि भयंकर से भयंकर बीमारी से भी जिंदगी में डरे नहीं। घीसूलाल बदामिया को जब पता चल गया कि उन्हें जानलेवा कैंसर है, तो भी वे डरे नहीं। बल्कि उससे लगातार दस साल तक लड़ते रहे। और आखिर कैंसर को हराकर जिंदगी से जीतकर बाहर निकले। इन दस सालों में ऐसा कोई दिन नहीं था कि जब वे घर में दुबक कर बैठ गए हों। वे हर रोज लगातार अपने व्यापार को संभालते रहे, उद्योग को विकसित करते रहे, लोगों से मिलते रहे, सभा-समारोहों में जाते रहे और समाज के कार्यों में लगे रहे। वास्तव में देखा जाए, तो यह सब उनकी हिम्मत और मन की मजबूती का कमाल था। यही हिम्मत उन्होंने अपने खास मित्र राम नाईक को भी उस वक्त दी थी, जब बीजेपी के दिग्गज नेता राम नाईक को कैंसर ने घेर लिया था। उस हिम्मत से ही नाईक भी कैंसर से लड़े और कैंसर को हराकर पहले सांसद बने फिर केंद्र में मंत्री भी बने और अब वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हैं। कैंसर की वेदना को बहुत नजदीक से झेलनेवाले बदामिया ने जनवरी 2017 में राजस्थान के सुमेरपुर स्थित भगवान महावीर हॉस्पिटल में घीसूलालजी धनराजजी बदामिया कैंसर चिकित्सा केंद्र बनवाया है, जिसका उद्घाटन राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने किया।
हर तरह के अच्छे काम में सहयोग करनेवाले बदामिया के सामाजिक कार्यों की सूची बहुत लंबी हो सकती है। देश के कोई भी नामी जैन तीर्थस्थल ऐसा नहीं है, जहां घीसूलाल बदामिया और उनके परिवार की ओर से किसी कार्य में कोई सहयोग न किया गया हो। सादड़ी जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में समाज को उन्होंने काफी सालों से अपनी सेवाएं दे रहे है। जमाने की परिस्थितियों के हिसाब से अपने बचपन में खुद तो बहुत पढ़ लिख नहीं पाए थे, लेकिन बड़े हुए तो शिक्षा के महत्व को बहुत नजदीक से जाना। सो, शिक्षा उनका सबसे प्रिय विषय है। उच्च शिक्षा में सैकड़ों को सहयोग करनेवाले बदामिया मारवाड़ इलाके के गोड़वाड़ में फालना स्थित श्री पाश्र्वनाथ उम्मेद जैन शिक्षण संघ, वरकाणा पाश्र्वनाथ जैन विद्यालय एवं विद्यावाड़ी खीमेल से काफी करीब से जुड़े हुए हैं। इन विख्यात शैक्षणिक संस्थानों में घीसूलाल बदामिया के सहयोग की छाप साफ देखी जा सकती है। वरकाणा जैसे छोटे से गांव में उन्होंने अपनी माता की स्मृति में श्रीमती उमरावबाई धनराजजी बदामिया इंगलिश हाई स्कूल बनवाया, जहां हर साल सैकड़ों बच्चे पढक़र जीवन को सफल बनाने के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। मुंबई की एस.एन.डी.टी. कॉलेज में श्रीमती पंपुबेन घीसूलाल बदामिया गल्र्स वेकेशन कोर्स बैच की शुरूआत की है। गुजरात में अहमदाबाद के पास कोबा में बन रहे जैन म्यूजियम में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्कूल, हॉस्टल, धर्मशाला, उपाश्रय, मंदिर आदि के निर्माण में बीते पांच दशक से अनगिनत सहयोग करनेवाले बदामिया पर पूरा मारवाड़ी समाज गर्व करता है। वे मानते हैं कि जिंदगी तो हर कोई जीता है, लेकिन असल में उनका जीना ही सफल होता है, जो अपने साथ साथ दूसरे लोगों का जीवन सफल बनाने में भी सहयोग करते हैं।
एक सम्मानित समाजसेवी और सफलतम उद्योगपति के रूप में बहुत सम्मान पानेवाले घीसूलाल बदामिया अपने जीवन के 75वें वर्ष में हैं। उनके जीवन के इस अमृत महोत्सव वर्ष पर समस्त राजस्थानी समाज की ओर से हार्दिक अभिनंदन एवं अनंत शुभकामनाएं। दरअसल, बदामिया एक अजेय योद्धा की तरह समाज के लिए समर्पित है, जो खुद हार कर समाज को जिताने में विश्वास रखता है। वे कहते हैं – मेरा समाज आगे बढ़ेगा, तो हम तो अपने आप ही आगे बढ़ जाएंगे। आगे बढऩे और आगे बढ़ाने की इसी आपसी होड़ को बदामिया जिंदगी को जीतने के रास्ते के रूप में देखते हैं। और, यह वो रास्ता है, जिस पर चलना हर किसी के बस की बात नहीं होता। घीसूलाल बदामिया को ईश्वर ने शायद किसी खास मिट्टी से बनाया हैं, इसीलिए, वे आज भी मजबूती से सबका नेतृत्व कर रहे हैं।