श्री मुछाला महावीर तीर्थ / Shree Muchhala Mahavir Tirth
पाषाण प्रतिमा पर वास्तविक मूछें निकल आने वाली बात को आज के युग में भले ही कोई व्यक्ति मानने को तैयार नहीं भी हो लेकिन घाणेराव गांव से ६ किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में एक प्राचीन और चमत्कारी तीर्थ है जिसको सदियों से मुछाला महावीर के नाम से पुकारा जाता है, जहां कभी भगवान महावीर की पाषाण प्रतिमा के मुख पर मूछें निकल आई थी। हमारे पूर्वजों ने भगवान महावीर की कल्पना करते समय मूछों का कहीं भी समावेश नहीं किया क्योंकि महावीर ने तो संन्यास लेने पर अपने बालों का लोचन कर लिया था लेकिन भक्तों के लिये भगवान को क्या क्या रूप धारण करने पड़ते हैं इसका एक चमत्कारी उदाहरण इस तीर्थ से जुड़ी दन्तकथाओं से मिलता है। वैसे प्रत्येक दन्त कथा का कोई न कोई आधार अवश्य होता है, भले ही वे कथाएं सदियों पश्चात कुछ विकृत हो जाय। इन्ही कथाओं के आधार पर गोड़वाड़ की पंचतीर्थी में घाणेराव का मुछाला महावीर तीर्थ अपने आपमें एक विशेषता लिये हुए है जिससे यह चमत्कारी तीर्थ कहलाता है तथा भारत में एकमात्र यही महावीर स्वामी का मंदिर है जो मूछाला महावीर के नाम से जाना जाता है। यद्यपपि वर्तमान में इस तीर्थ के मूलनायक की प्रतिमा पर मूछें नहीं है लेकिन इस तीर्थ की पृष्ठभूमी में जो घटना जुड़ी हुई है वह आज के वैज्ञानिक युग के लिए चुनौती ही कही जायेगी। कहते हैं कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा के पश्चात मेवाड़ के महाराणा कुंभा एक बार अपने सामन्तों के साथ यहा दर्शनार्थ आये मंदिर के पुजारी ने महाराणा को भगवान का पक्षालजल प्रेषित कर आदर दिया, पर जल में एक बाल देख सामन्तों में से किसी एक ने पुजारी अक्षयचक्र को व्यंग में कह दिया। इतना ही नहीं पुजारी अक्षयचक्र ने यह भी कह दिया की भगवान तो समय समय पर अपनी इच्छानुसार अनेक रूप धारण करते रहते हैं। इस पर हटीली प्रवृत्ति वाले महाराणा कुंभा ने पुजारी को यह सब सिद्ध करने का कहा भक्तिभाववाले पुजारी ने इसे सच्चा करके दिखाने के लिये तीन दिन का समय मांगा। पुजारी ने तीन दिन तक अखण्ड व्रत करके तप किया जिससे सचमुच महावीर की प्रतिमा के मूंछे निकल आई। महाराणा आये और मुछाला महावीर के दर्शन किये किंन्तु वास्तविकता का पता लगाने के लिए वे प्रतिमा के पास जाकर मूंछ से एक बाल खींच लिया जिसमें से दूध की धारा प्रवाहित होने लगी और महाराणा कुंभा ने भगवान के आगे नतमस्तक होकर प्रणाम किया। कहते हैं आज भी महावीर की मूल प्रतिमा का मुखमण्डप दिन में अलग, शाम को अलग तथा प्रातः बिल्कुल अलग प्रकार से बन जाता है।
मुछाला महावीर का तीर्थ अरावली पर्वतमालाओं की गोद में घने जंगलों के बीच बहने वाली सूकी नदी के किनारे पहाड़यो से घिरे मैदान में स्थित है, जहां केवल मंदिर तथा आसपास धर्मशाला व भोजनशाला ही है। ऐसा कहा जाता है कि शताब्दियों पूर्व यहां जैन धर्मावलम्बियों की घनी बस्ती जो समय की गति के साथ उजड़ गई। आज यहां बस्ती नहीं होते हुये भी यह मंदिर आगन्तुकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। देव विमान जैसा भगवान महावीर का चोबीस जिनालय वाला यह भव्य मंदिर जंगल में मंगल की कहावत चरितार्थ करता है। मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया, इसके पुष्ट प्रमाण तो कहीं नहीं मिलते लेकिन मंदिर बहुत प्राचीन है। मंदिर की स्थापत्य कला को देख कर पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंदिर दसवीं अथवा ग्यारहवीं शताब्दी का होना चाहिये परन्तु साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई नन्दीवर्द्धन के परिवार से संबधित सोहनसिंह ने करवाया था इसका उल्लेख यहां प्राचीन लिपि में एक शिलालेख पर मिलता है। इस विशाल मंदिर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में है तथा द्वार के दोनो ओर हाथी बनाकर खडे किया गये हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही एक विशाल खुला मण्डप खंभो पर टिका हुआ है। इस मंदिर में दो प्रदिक्षणा है। मंदिर का गगनचुम्बी शिखर और बड़ा रंगमण्डप तथा फेरी के झरोखों की विविध कलापूर्ण जालियां यहां की स्थापत्यकला का नमूना है।
मंदिर की अन्य कलाकृतियों में नृत्य करती देवी देवतांओं की मूर्तियां बड़ी मोहक लगती है। मंदिर में चारों ओर कतारबन्द देरियां है। मंदिर के मूल गंभारे में भव्य एवं प्राचीन परिकर युक्त प्रतिमा बिराजमान है। कहा जाता है कि सोमनाथ जाते हुए मोहम्मद गजनवी इसी मार्ग से गुजरा था जिसने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त किया, लेकिन उसकी सेना रोगग्रस्त हो जाने से गजनवी घाणेराव को लुटता हुआ गुजरात की ओर बढ़ गया। इस अवसर पर उसने मुख्य प्रतिमा को खण्डित कर दिया था जिसे बादमे जीर्णोद्धार के समय लेप चढ़ाकर पूर्व की भांति बना दिया गया। इस मंदिर की प्रतिष्ठा और जीर्णोद्धार कब कब और किस किस ने करवाया इसका पूरा विवरण कहीं उपलब्ध नहीं है लेकिन अन्तिम जीर्णोद्धार वि.सं. २०१७ में होकर सं. २०२२ में पुनः प्रतिष्ठा होने की जानकारी मिली है। मंदिर की देरियों के साथ एक स्थान पर अधिष्ठायक देव की प्रतिमा स्थापित है जो काफी चमत्कारी बताये जाते है। देरीयों में अन्य देवीदेवताओं की मूर्तियां है इन्ही देरियों के बीच एक बड़ा देरासर बना हुआ है जिसमें भी महावीर स्वामी की श्वेतवर्णी प्रतिमा है जिसपर सं. १९०३ का लेख उत्कीर्ण है। एक ओर देवकुलिकाओं में श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा है जिसपर सं. १८९३ में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है।